Ashoka Tree
अशोक का वृक्ष हरित वृक्ष आम के समान 25 से 30 फुट तक ऊँचा, बहुत-सी शाखाओं से युक्त घना व छायादार हाता है। देखने में यह मौलश्री के पेड़ जैसा लगता है,
परन्तु ऊँचाई में उससे छोटा ही होता है। इसका तना कुछ लालिमा लिए हुए भूरे रंग का होता है। यह वृक्ष सारे भारत में पाया जाता है। इसके पल्लव 9 इंच लंबे, गोल व नोंकदार होते हैं। ये साधारण डण्ठल के व दोनों ओर 5-6 जोड़ों में लगते हैं। कोमल अवस्था में इनका वर्ण श्वेताभ लाल फिर गहरा हरा हो जाता है। पत्ते सूखने पर लाल हो जाते हैं। फल वसंत ऋतु में आते हैं। पहले कुछ नारंगी, फिर क्रमशः लाल हो जाते हैं। ये वर्षा काल तक ही रहते हैं।
अशोक वृक्ष की फलियाँ आठ से दस इंच लंबी चपटी, एक से दो इंच चौड़ी दोनों सिरों पर कुछ टेढ़ी होती है। ये ज्येष्ठ माह में लगती हैं। प्रत्येक में चार से दस की संख्या में बीज होते हैं। फलियाँ पहले जामुनी व पकने पर काले वर्ण की हो जाती हैं। बीज के ऊपर की पपड़ी रक्ताभ वर्ण की, चमड़े के सदृश मोटी होती है। औषधीय प्रयोजन में छाल, पुष्प व बीज प्रयुक्त होते हैं। असली अशोक व सीता अशोक, पेण्डुलर ड्रपिंग अशोक जैसी मात्र बगीचों में शोभा देने वाली जातियों में औषधि की दृष्टि से भारी अंतर होता है। छाल इस दृष्टि से सही प्रयुक्त हो, यह अनिवार्य है। असली अशोक की छाल बाहर से शुभ्र धूसर, स्पर्श करने से खुरदरी अंदर से रक्त वर्ण की होती है। स्वाद में कड़वी होती है। मिलावट के बतौर कहीं-कहीं आम के पत्तों वाले अशोक का भी प्रयोग होता है, पर यह वास्तविक अशोक नहीं है।
Sptparni
अक्सर उद्यानों, सड़कों और घरों के आसपास सुंदर सफेद फूलों वाले मध्यम आकार के सप्तपर्णी के पेड़ देखे जा सकते हैं। यह एक ऐसा पेड़ है जिसकी पत्तियाँ चक्राकार समूह में सात – सात के क्रम में लगी होती है और इसी कारण इसे सप्तपर्णी कहा जाता है। इसका वानस्पतिक नाम एल्सटोनिया स्कोलारिस है। सुंदर फ़ूलों और उनकी मादक गंध की वजह से इसे उद्यानों में भी लगाया जाता है और फूलों को अक्सर मंदिरों और पूजा घरों में भगवान को अर्पित भी किया जाता है। आदिवासियों के बीच इस पेड़ की छाल, पत्तियों आदि को अनेक हर्बल नुस्खों के तौर पर अपनाया जाता है। चलिए आज जानते हैं सप्तपर्णी के औषधीय महत्व के बारे में।
Kadamb
कदम्ब का पेड़ बड़ा होता है। यह काफ़ी मशहूर भी है। इसके पत्ते बड़े और मोटे होते हैं जिनसे गोंद भी निकलता है। कदम्ब के पेड़ के पत्ते महुए के पत्तों जैसे और फल नींबू की तरह गोल होते है और फूल फलों के ऊपर ही होते है। फूल छोटे और खुशबुदार होते हैं। कदम्ब की कई सारी जातियाँ हैं जैसे-
राजकदम्ब,
धूलिकदम्ब और
कदम्बिका।
Delonix regia
गुलमोहर लाल फूलों वाला पेड़ है। इसकी जन्मभूमि मेडागास्कर को माना जाता है। भरी गर्मियों में गुलमोहर के पेड़ पर पत्तियाँ तो नाममात्र होती हैं, परंतु फूल इतने अधिक होते हैं कि गिनना कठिन।
गुलमोहर के फूल मकरंद के अच्छे स्रोत हैं। शहद की मक्खियाँ फूलों पर खूब मँडराती हैं। मकरंद के साथ पराग भी इन्हें इन फूलों से प्राप्त होता है। गुलमोहर के फूल मकरंद के अच्छे स्रोत हैं। शहद की मक्खियाँ फूलों पर खूब मँडराती हैं। मकरंद के साथ पराग भी इन्हें इन फूलों से प्राप्त होता है। सूखी कठोर भूमि पर खड़े पसरी हुई शाखाओं वाले गुलमोहर पर पहला फूल निकलने के एक सप्ताह के भीतर ही पूरा वृक्ष गाढ़े लाल रंग के अंगारों जैसे फूलों से भर जाता है। ये फूल लाल के अलावा नारंगी, पीले रंग के भी होते हैं। वसंत से गर्मी तक यानी मार्च अप्रैल से लेकर जून जुलाई तक गुलमोहर अपने उपर लाल नारंगी रंग के फूलों की चादर ओढ़े भीषण गर्मी को सहता देखने वालों की आंखों में ठंडक का अहसास देता है।
Bauhinia
कचनार एक सुंदर फूलों वाला वृक्ष है। कचनार के छोटे अथवा मध्यम ऊँचाई के वृक्ष भारतवर्ष में सर्वत्र होते हैं। लेग्यूमिनोसी कुल और सीज़लपिनिआयडी उपकुल के अंतर्गत बॉहिनिया प्रजाति की समान, परंतु किंचित् भिन्न, दो वृक्षजातियों को यह नाम दिया जाता है, जिन्हें बॉहिनिया वैरीगेटा और बॉहिनिया परप्यूरिया कहते हैं। बॉहिनिया प्रजाति की वनस्पतियों में पत्र का अग्रभाग मध्य में इस तरह कटा या दबा हुआ होता है मानों दो पत्र जुड़े हुए हों। इसीलिए कचनार को युग्मपत्र भी कहा गया है।
बॉहिनिया वैरीगेटा में पत्र के दोनों खंड गोल अग्रभाग वाले और तिहाई या चौथाई दूरी तक पृथक, पत्रशिराएँ १३ से १५ तक, पुष्पकलिका का घेरा सपाट और पुष्प बड़े, मंद सौरभ वाले, श्वेत, गुलाबी अथवा नीलारुण वर्ण के होते हैं। एक पुष्पदल चित्रित मिश्रवर्ण का होता है। अत: पुष्पवर्ण के अनुसार इसके श्वेत और लाल दो भेद माने जा सकते हैं। बॉहिनिया परप्यूरिया में पत्रखंड अधिक दूर तक पृथक पत्रशिराएँ ९ से ११ तक, पुष्पकलिकाओं का घेरा उभरी हुई संधियों के कारण कोणयुक्त और पुष्प नीलारुण होते हैं।