अर्जुन
अर्जुन वृक्ष भारत में होने वाला एक औषधीय वृक्ष है। ।इसकी छाल पेड़ से उतार लेने पर फिर उग आती है । छाल का ही प्रयोग होता है अतः उगने के लिए कम से कम दो वर्षा ऋतुएँ चाहिए । एक वृक्ष में छाल तीन साल के चक्र में मिलती हैं । छाल बाहर से सफेद, अन्दर से चिकनी, मोटी तथा हल्के गुलाबी रंग की होती है । लगभग 4 मिलीमीटर मोटी यह छाल वर्ष में एक बार स्वयंमेव निकलकर नीचे गिर पड़ती है । स्वाद कसैला, तीखा होता है तथा गोदने पर वृक्ष से एक प्रकार का दूध निकलता है ।
पत्ते अमरुद के पत्तों जैसे 7 से 20 सेण्टीमीटर लंबे आयताकार होते हैं या कहीं-कहीं नुकीले होते हैं । किनारे सरल तथा कहीं-कहीं सूक्ष्म दाँतों वाले होते हैं । वे वसंत में नए आते हैं तथा छोटी-छोटी टहनियों पर लगे होते हैं । ऊपरी भाग चिकना व निचला रुक्ष तथा शिरायुक्त होता है । फल वसंत में ही आते हैं, सफेद या पीले मंजरियों में लगे होते हैं । इनमें हल्की सी सुगंध भी होती है । फल लंबे अण्डाकार 5 या 7 धारियों वाले जेठ से श्रावण मास के बीच लगते हैं व शीतकाल में पकते हैं । 2 से 5 सेण्टी मीटर लंबे ये फल कच्ची अवस्था में हरे-पीले तथा पकने पर भूरे-लाल रंग के हो जाते हैं । फलों की गंध अरुचिकर व स्वाद कसौला होता है । फल ही अर्जुन का बीज है । अर्जुन वृक्ष का गोंद स्वच्छ सुनहरा, भूरा व पारदर्शक होता है ।
शीशम
शीशम बहुपयोगी वृक्ष है। इसकी लकड़ी, पत्तियाँ, जड़ें सभी काम में आती हैं। लकड़ियों से फर्नीचर बनता है। पत्तियाँ पशुओं के लिए प्रोटीनयुक्त चारा होती हैं। जड़ें भूमि को अधिक उपजाऊ बनाती हैं। पत्तियाँ व शाखाएँ वर्षा-जल की बूँदों को धीरे-धीरे जमीन पर गिराकर भू-जल भंडार बढ़ाती हैं।
शीशम की लकड़ी भारी, मजबूत व बादामी रंग की होती है। इसके अंतःकाष्ठ की अपेक्षा बाह्य काष्ठ का रंग हल्का बादामी या भूरा सफेद होता है। लकड़ी के इस भाग में कीड़े लगने की आशंका रहती है। इसलिए इसे नीला थोथा, जिंक क्लोराइड या अन्य कीटरक्षक रसायनों से उपचारित करना जरूरी है।
शीशम के 10-12 वर्ष के पेड़ के तने की गोलाई 70-75 व 25-30 वर्ष के पेड़ के तने की गोलाई 135 सेमी तक हो जाती है। इसके एक घनफीट लकड़ी का वजन 22.5 से 24.5 किलोग्राम तक होता है। आसाम से प्राप्त लकड़ी कुछ हल्की 19-20 किलोग्राम प्रति घनफुट वजन की होती है।
नीम
नीम एक तेजी से बढ़ने वाला सदाबहार पेड़ है जो 15-20 मी (लगभग 50-65 फुट) की ऊंचाई तक पहुंच सकता है, और कभी कभी 35-40 मी (115-131 फुट) तक भी ऊंचा हो सकता है। नीम एक सदाबहार पेड़ है लेकिन गंभीर सूखे में इसकी अधिकतर या लगभग सभी पत्तियां झड़ जाती हैं। इसकी शाखाओं का प्रसार व्यापक होता है।
तना अपेक्षाकृत, सीधा और छोटा होता और व्यास मे 1.2 मीटर तक पहुँच सकता है। इसकी छाल, कठोर, विदरित (दरारयुक्त) या शल्कीय होती है और इसका रंग सफेद-धूसर या लाल भूरा भी हो सकता है। रसदारु भूरा-सफेद और अंत:काष्ठ लाल रंग का होता है जो वायु के संपर्क मे आने से लाल-भूरे रंग मे परिवर्तित हो जाता है। जड़ प्रणाली मे एक मजबूत मुख्य मूसला जड़ और अच्छी तरह से विकसित पार्श्व जड़ें शामिल होती हैं।
20-40 सेमी (8 से 16 इंच) तक लंबी प्रत्यावर्ती पिच्छाकार पत्तियां जिनमे, 20 से लेकर 31 तक गहरे हरे रंग के पत्रक होते हैं जिनकी लंबाई 3-8 सेमी (1 से 3 इंच) तक होती है। अग्रस्त (टर्मिनल) पत्रक प्राय: उनुपस्थित होता है। पर्णवृंत छोटा होता है। कोंपलों (नयी पत्तियाँ) का रंग थोड़ा बैंगनी या लालामी लिये होता है। परिपक्व पत्रकों का आकार आमतौर पर असममितीय होता है और इनके किनारे दंतीय होते हैं।
करंज
इसके पत्र पक्षवत् संयुक्त , असम पक्षवत् (इंपेरी-पिन्नेट) और पत्रक गहरे हरे, चमकीले और प्राय: 2-5 इंच लंबे होते हैं। पुष्प देखने में मोती सदृश, गुलाबी और आसमानी छाया लिए हुए श्वेत वर्ण के होते हैं। फली कठोर एवं मोटे छिलके की, एक बीजवाली, चिपटी और टेढ़ी नोकवाली होती है। पुष्पित होने पर इसके मोती तुल्य पुष्प रात्रि में वृक्ष के नीचे गिरकर बहुत सुंदर मालूम होते हैं। ‘करंज’ एवं ‘नक्तमाल’ संज्ञाओं की सार्थकता और काव्यों में प्रकृतिवर्णन के प्रसंग में इनका उल्लेख इसी कारण होता है।
यूकेलिप्टस
यह पेड़ काफी लंबा और पतला होता है। इसकी पत्तियों से प्राप्त होने वाले तेल का उपयोग औषघि और अन्य रूप में किया जाता है। पत्तियां लंबी और नुकीली होती हैं जिनकी सतह पर गांठ पाई जाती है जिसमें तेल संचित रहता है। इस पौघे की पल्लवों पर फूल लगे होते हैं जो एक कप जैसी झिल्ली से अच्छी तरह ढंके होते हैं। फूलों से फल बनने की प्रक्रिया के दौरान यह झिल्ली स्वयं ही फट कर अलग हो जाती है। इसके फल काफी सख्त होते हैं जिसके अंदर छोटे-छोटे बीज पाए जाते हैं।